वर्तमान में हुए उपचुनावाें से भाजपा को सबक लेनी चाहिए। गाैरतलब है कि 20 विपक्षी पार्टियां भी भाजपा के माथे पर बल पैदा कर रही है। जमीनी हकीकत से दूर जाना सत्ता का पुराना शगल रहा है। 29 साल से एक छत्र भाजपा की परंपरागत सीट जो गोरक्षपीठ के पास थी उसके खेवनहार योगी अादित्यनाथ के छोड़ने के बाद हाथ से निकल गई। यानी जो उम्मीदवार इस सीट से अपना भाग्य अजमा रहे थे वे अपने क्षेत्र में या तो लोकप्रिय नहीं थे या फिर अपने पूर्ववर्ती उम्मीदवार के किए कामाें को ठीक से भुना नहीं पाए। या फिर क्षेत्र की जनता जो उम्मीद करती थी उसपर केन्द्र सरकार खरी नहीं उतरी कारण जो भी रहा हो परिणाम तो निश्चित ही निराशा पैदा करते हैं। गहन मंथन की जरुरत है केन्द्र अाैर राज्य सरकार को वरना वो दिन दूर नहीं जब इस अपार बहुमत का मजा 2019 में किरकिरा हो जाए।